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Wednesday, December 21, 2016

परदेसी दीवाली

उंगलिया चला ली बहुत कंप्यूटर पे,आज फिर दूकान सजानी है,फिर बर्तनों की चमक से चौंक जाने का मन कर रहा।
न जाने क्यों पटाखों का शोर सुनने का मन कर रहा,आज रात जगमगाते आसमा को देखने का मन कर रहा।।

गिन लिए दिन रात बहुत बिन अपनों के, आज रात कुछ बिखरे नोट गिनने का मन कर रहा।
न जाने क्यों पटाखों का शोर सुनने का मन कर रहा,आज रात जगमगाते आसमा को देखने का मन कर रहा।।

पिज़्ज़ाओ और बर्गरों की थाली अब फीकी लगती है,पूड़ी सब्जी की खुशबू से पेट भरने को मन कर रहा।
न जाने क्यों पटाखों का शोर सुनने का मन कर रहा,आज रात जगमगाते आसमा को देखने का मन कर रहा।।

पतझड़ आ गई यहाँ सब पत्ते बिखर गए,कुछ पत्ते उठाकर तीन पत्ती खेलने को मन कर रहा।
न जाने क्यों पटाखों का शोर सुनने का मन कर रहा,आज रात जगमगाते आसमा को देखने का मन कर रहा।।

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