सहूलितयों के एनक लगा के,सुविधाओं के आइने मे सफलता का प्रतिबिंब देख लिया,
हम क्या बने क्या नही बने,वो सब तो ठीक है।
कुछ हैं जिनका कोइ नही उनसे पूछते चलो और भैया सब ठीक है।।
हम तो इच्छाओं का समंदर रखते हैं, कही तो जरूरतों की बूंदे सुख जाती हैं,
इस विलासिता के शोरगुल में दब गई सरलता की चीख है।
कुछ हैं जिनका कोइ नही उनसे पूछते चलो और भैया सब ठीक है।।
जशन की रातों में सुख के धुले चादर तो बहुत ओढ़ लिए,
कभी किसी के आंसुओं के दाग धोना भी ठीक है।
हम क्या बने क्या नही बने,वो सब तो ठीक है।
कुछ हैं जिनका कोइ नही उनसे पूछते चलो और भैया सब ठीक है।।
हँसी की गुल्लक फोड़ खुशी के पल खरीदना, रोते को हसाना फिर हँसा हँसा के रुलाना भी ठीक है।
कुछ हैं जिनका कोइ नही उनसे पूछते चलो और भैया सब ठीक है।।
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